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तारीख-ए-फरिश्ता (मुहम्मद कासिम हिंदूशाह या फरिश्ता)

अलबरूनी ने अपने सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ ‘तारीख-उल-हिन्द’ में महमूद के भारत आक्रमण तथा उनके प्रभावों का वर्णन किया है। उसने हिन्दी धर्म, साहित्य तथा विज्ञान का भी सुन्दर वर्णन किया है। इस प्रकार इस ग्रंथ से महमूद के आक्रमणों तथा तत्कालीन सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। सुचारू रूप से इस ग्रंथ को अंग्रेजी में अनुवादित भी किया है। ताजुल-मासिर[संपादित करें]

यद्यपि तारीख-ए-शेरशाही में घटनाओं की तिथियाँ नहीं दी गई हैं, फिर भी, इसे एक प्रामाणिक स्रोत-सामग्री माना जाता है और अनेक इतिहासकारों ने इसके आधार पर शेरशाह का इतिहास लिखा है। सरवानी ने अनेक घटनाओं से संबंधित अपने सूचना-स्रोतों का भी उल्लेख किया है, जिसके कारण इस पुस्तक के तथ्य विश्वसनीय माने जाते हैं। वास्तव में, शेरशाह का संपूर्ण विवरण जितना विस्तारपूर्वक तारीख-ए-शेरशाही में मिलता है, उतना किसी अन्य ग्रंथ में नहीं मिलता है।

प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास by

एक तनशाह जिसके मरने के बाद महिला ने किया उसके शव पर पेशाब

‘ताज-उल-मासिर’ निशापुर (ईरान) के हसन निजामी की रचना है। जब निशापुर पर मंगोलों ने आक्रमण किया, तो निजामी भागकर भारत आ गया और कुत्बुद्दीन ऐबक के यहाँ नौकरी करके यहीं बस गया था। मासिर की रचना अरबी और फारसी दोनों में की गई थी, किंतु इसमें तराइन के प्रथम युद्ध का वर्णन नहीं मिलता है क्योंकि इस युद्ध में गोरी की हार हुई थी। हसन निजामी कुत्बुद्दीन ऐबक का समकालीन था और उसकी रचना ऐबक के जीवन पर केंद्रित है, फिर भी, निजामी ने ऐबक की मृत्यु के बाद इल्तुतमिश के प्रारंभिक वर्षों के इतिहास का भी प्रामाणिक विवरण दिया है।

सल्तनतकाल की अपेक्षा मुगलकाल में इतिहास-ग्रंथ, संस्मरण और आत्मकथाओं के लेखन को अधिक प्रोत्साहन मिला। इसका कारण यह था कि मुगल शासक स्वयं विद्वान थे और अपने दरबारी विद्वानों को इतिहास लेखन के लिए प्रेरित करते थे। इस काल में दरबारी इतिहासकारों के अतिरिक्त, गैर-दरबारी इतिहासकारों ने भी इतिहास-लेखन किया। दरबारी इतिहासकारों ने जहाँ राजकीय पक्ष में इतिहास लिखा, वहीं गैर-दरबारी इतिहासकारों ने दरबार की नीतियों की आलोचना की है। मुगलकालीन कुछ महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत इस प्रकार हैं-

जलालुद्दीन फीरोज़ खिल्जी, जो की इस वंश का संस्थापक था

दाऊद पोता ने उसे सम्पादित करके प्रकाशित किया है।

वाकयात-ए-मुश्ताकी (रिजकुल्लाह मुश्ताकी)

हिन्दी- भाषा के इतिहास का काल-विभाजन

‘तजकिरात-उल-वाकयात’ को ‘वाकियाते-हुमायूँनी’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका लेखक जौहर आफताबची हुमायूँ का एक सेवक था। जौहर ने अकबर के more info शासनकाल में अपनी स्मृति के आधार पर तजकिरात-उल-वाकयात की रचना की थी। इसमें उसने हुमायूँ  के राज्यारोहण से लेकर उसकी मृत्यु तक की घटनाओं का वर्णन बड़ी बेबाकी से किया है। वास्तव में, वाकियाते-हुमायूँनी हुमायूँ के समय का प्रामाणिक इतिहास है। जौहर ने स्वयं लिखा है कि उसका उद्देश्य केवल उन्हीं घटनाओं को लिखना था, जो हुमायूँ के जीवन से संबंधित थीं। डाउसन के अनुसार जौहर का विवरण सच्चा और ईमानदारी से लिखा हुआ लगता है। इसमें बहुत हद तक अत्युक्ति नहीं है और न ही बादशाह की अनुचित प्रशंसा है।

सचाऊ ने अलबेरूनीज इंडियाः एन अकाउंट ऑफ रिलीजन नाम से और हिंदी अनुवाद रजनीकांत शर्मा ने भारतीय समाज एवं संस्कृति के नाम से किया है।

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